विर एकलव्य के साथ सल कपट का सच
*एकलव्य_जैसा_प्रतिभाशाली इतना गधा तो नहीं रहा होगा कि, तथाकथित गुरू-दक्षिणा के नाम पर उसने अपने ही हाथों अपना अंगूठा (काबिलियत) काट कर उस छलिये को दे दिया हो जिसने उसे धनुर्विद्या सिखायी ही नहीं...???*
द्रोणाचार्य का कुत्ता उनके पास आकर उनके चरणों में लोट गया।
द्रोणाचार्य ने देखा तो कुत्ते का मुँह बाणों से भरा हुआ था लेकिन उसके मुँह में कहीँ कोई चोट नही थी । कुत्ते के मुँह से कहीँ खून नही निकल रहा था ।
*द्रोणाचार्य चकित रह गये कि कोई इतना बड़ा धनुर्धर कैसे हो सकता है। जो विद्या अभी तक अर्जुन नहीं सीख पाया... जो विद्या मैं स्वयं नहीं जानता,उसको कोई शूद्र कैसे सीख सकता है।*
सारे राजकुमार भी हैरत में थे।
उन्होंने द्रोणाचार्य से कहा गुरुवर कौन कर सकता है ऐसा ?
हमको अचरज है, हमने ऐसा कभी नहीं देखा।
द्रोणाचार्य ने कहा शांत रहो । चलकर देखते हैं कौन ऐसा धनुर्धर पैदा हो गया जिसने इतनी सफाई से कुत्ते का मुँह बन्द कर दिया...???
द्रोणाचार्य और सारे राजकुमार कुत्ते के पीछे पीछे चलने लगे,घने जंगल में जाकर देखा तो एक आदिवासी युवक अपनी धुन में मगन होकर धनुर्विद्या का अभ्यास कर रहा था ।
द्रोणाचार्य ने युवक को आवाज लगाई!
*हे धनुर्धारी युवक तुम कौन हो और तुमने हमारे कुत्ते का मुँह क्यों बंद किया था ??*
उस युवक ने कहा, मैं निषादराज का पुत्र एकलव्य हूँ । इस कुत्ते के बार बार भौंकने से मेरा ध्यान भंग हो रहा था और मैं अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पा रहा था इसलिए मैंने कुत्ते का मुँह बन्द कर दिया ।
*द्रोणाचार्य ने कहा तुमने ये विद्या कहाँ से सीखी है ?*
एकलव्य ने कहा,
*हे ब्राह्मण, धनुर्विद्या तो हमारे रक्त में बसती है.. पहले से ही हम शिकार और अपनी शिक्षा के लिए धनुष बाण चलाते आएं हैं; मैंने इतनी अच्छी धनुर्विद्या अभ्यास से सीखी है ।*
द्रोणाचार्य ने कहा:
कोई गुरु तो होगा तुम्हारा ?
किसी से तो विद्या सीखी ही होगी..??
एकलव्य ने कहा:
*मेरे माता पिता और समाज ही मेरे गुरु हैं...!!*
द्रोणाचार्य ने कहा:
क्या तुम रोज यहाँ अभ्यास करने आते हो..?
एकलव्य ने कहा:
*मैं रोज ही यहाँ आता हूँ ।*
इतना सुनने के बाद द्रोणाचार्य राजकुमारों के साथ अपने आश्रम वापिस आ गया...।
*आश्रम में पहुँचते ही अर्जुन द्रोणाचार्य पर क्रोधित होकर बोला गुरुदेव आपने मुझको वचन दिया था कि मैं दुनिया का सबसे बड़ा धनुर्धर होऊंगा,फिर वो एक निषाद का बेटा मुझसे बड़ा धनुर्धर कैसे हो सकता है ?गुरुवर आप अपने वचन को अधूरा कैसे रहने दे सकते हैं ?*
आपका वचन मिथ्या कैसे हो सकता है ? इतिहास आपका वर्णन मिथ्या पुरुष के रूप में करेगा ।
द्रोणाचार्य ने कहा: -
*उत्तेजित मत होओ अर्जुन । मैंने तुमको सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनाने का वायदा किया था और वो वायदा छल कपट, साम दाम, दंड भेद से भी पूरा होगा।*
*अवसरवादी पुरुष को इस तरह उत्तेजित होना शोभा नहीं देता । मत भूलो मैं तुम्हारा गुरु हूँ.. और अपना वचन पूरा करने के लिए मैं किसी भी हद तक जा सकता हूँ...!!!*
एक काम करो.. किसी शिल्पकार को मेरी एक मूर्ति तैयार करने का आदेश दो।
द्रोणाचार्य की मूर्ति बनकर तैयार हो गई । रात को ही द्रोणाचार्य की मूर्ति को उस स्थान पर स्थापित कर दिया गया जहाँ एकलव्य तीरंदाजी का अभ्यास किया करता था।
दिन निकला और राजकुमारों के साथ द्रोणाचार्य उस स्थान पर पहुंच गए जहाँ एकलव्य अभ्यास कर रहा था ।
द्रोणाचार्य ने एकलव्य से कहा.. *निषादपुत्र तुमने हमसे झूठ बोला था कि तुम्हारा कोई गुरु नही है जबकि तुमने ये विद्या हमसे चुराई है; तुमने हमारी मूर्ति को सामने रखकर विद्या सीखी है । जबकि इसके लिए हमसे कोई इजाजत भी नहीं ली थी। ये विद्या चोरी है, इसका दंड तुमको भोगना पड़ेगा ।*
*एकलव्य ने कहा.....*
*हे! विप्र मैंने कोई विद्या नही चुराई और ये मूर्ति भी मैंने यहाँ स्थापित नही की।*
*मैं नही जानता कि ये मूर्ति यहाँ कैसे आ गई...? एक ब्राह्मण होकर आपको इस तरह छल करना शोभा नहीं देता ।*
अर्जुन क्रोधित हो उठा ।
उसने कहा:
गुरुवर ये आपका अपमान कर रहा है,कहो तो इसकी गर्दन उड़ा दूँ। इसने आपका अपमान करने की धृष्टता की है । इसको जीने का कोई अधिकार नहीं है ।
*द्रोणाचार्य ने कहा:*
*नही अर्जुन.. इसका जीवन लेना हमारा ध्येय नही है । हमारा ध्येय इसकी विद्या छीनकर इसको विद्याहीन और गुलाम बनाना है !!!*
*मैं तुम सब राजकुमारों को आदेश देता हूँ....इसको पकड़कर इसके दाहिने हाथ का अँगूठा काट दो...।*
*. . . . फि र . . . .*
*राजकुमारों ने वीर एकलव्य को पकड़कर उसके दाहिने हाथ का अँगूठा काट दिया ।*
*अर्जुन की खुशी का ठिकाना नहीं रहा।*
गुरुवर आप महान हो। आपने अपने वचन की लाज रख ली और मुझको सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर होने से अब कोई नहीं रोक सकता ।
*द्रोणाचार्य ने कहा.. अभी हमारा कार्य पूर्ण नही हुआ है । अगर किसी को इस घटना का पता चलेगा तो हम पर छल कपट करने का आरोप लगेगा ।*
*इससे पहले एकलव्य के द्वारा किसी को घटना का पता चले..... जाओ तुम खुद ही प्रचारित कर दो कि निषादपुत्र एकलव्य गुरु द्रोणाचार्य की मूर्ति बनाकर शिक्षा ले रहा था । गुरु दक्षिणा माँगने पर उसने अपने दाहिने हाथ का अंगूठा गुरु-दक्षिणा में दे दिया । उसके बाद अगर वो किसी से कहेगा भी तो उसकी कोई नही सुनेगा । हमारे धार्मिक अफवाह के सामने उसकी सच्चाई भी दम तोड़ देगी । वैसे भी सत्ता शासन तो हमारे ही है...!!!*
*जाओ इसको आग की तरह फैला दो और पुराणों में लिखवा भी दो।*
जय आदिवासी
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